About Raja Ram Mohan Roy | राजा राममोहन रॉय की जीवनी
Raja Ram Mohan Roy ब्राह्मण राजकुमार और लेखक के साथ साथ, वह एक भारतीय सामाजिक और धार्मिक सुधारक भी थे, राम मोहन रॉय के जन्म के बारे में सिर्फ अनुमान लगाया है कि इनका जन्म 22 मई 1772 में ब्रिटिश राज में बंगाल प्रेसीडेंसी के राधानगर में हुआ था। राम मोहन रॉय को नव युग के अग्रदूत और भारतीय पुनर्जागरण के जनक के नाम से भी जाना जाता है।
राजा राम मोहन रॉय जो 1828 में ब्रह्म समाज के संस्थापकों में से एक थे और ब्रह्म समाज के अग्रदूत थे जो कि एक सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन था। राम मोहन रॉय FRAS (Fellow of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) के सदस्य भी थे। राजा राम मोहन रॉय को मुगल सम्राट अकबर की दूसरा राजा की उपाधि दी गई थी।
राम मोहन राय के पिता का नाम रामकांत राय (Ramkant Roy) और माता का नाम तारिणीदेवी (Tarinidevi) था। राम मोहन राय ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गाँव के स्कूल में की थी।
राजा राम मोहन रॉय एक प्रभाव राजनीति, लोक प्रशासन, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में स्पष्ट ज्ञान था। सती प्रथा और बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने के लिए राजा राम मोहन रॉय को जाना जाता था। Raja Ram Mohan Roy की मृत्यु 61 वर्ष की आयु में मैनिंजाइटिस या एक पुरानी श्वसन बीमारी के कारण 27 सितंबर 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल शहर के स्टेपलटन में हुई थी।
Education of Raja Ram Mohan Roy | राजा राम मोहन राय की शिक्षा
राजा राममोहन राय ने अपनी शुरुआती पढ़ाई के बाद उच्च अध्ययन के लिए पटना गए और वहाँ से उन्होंने फारसी और अरबी का अध्ययन किया। जहाँ राजा राममोहन राय ने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों की रचनाएँ के साथ प्लेटो और अरस्तू की रचनाओं का अरबी अनुवाद पढ़ा था। राजा राममोहन राय ने 15 वर्ष की आयु तक बंगाली, फारसी, अरबी और संस्कृत भाषा सीख ली थी।
राजा राम मोहन राय की साहित्यिक कृतियाँ | Literary Works of Raja Ram Mohan Roy
- Tuhfat-ul-Muwahhidin (1804)
- Vedanta Gantha (1815)
- Translation of an abridgement of the Vedanta Sara (1816)
- Kenopanishads (1816)
- Ishopanishad (1816)
- Kathopanishad (1817)
- A Conference between the Advocate for, and an Opponent of Practice of Burning Widows Alive (Bengali and English) (1818)
- Mundaka Upanishad (1819)
- A Defence of Hindu Theism (1820)
- The Precepts of Jesus- The Guide to Peace and Happiness (1820)
- Bengali Grammar (1826)
- The Universal Religion (1829)
- History of Indian Philosophy (1829)
- Gaudiya Vyakaran (1833)
Father of the Indian Renaissance | भारतीय पुनर्जागरण के जनक
राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) कई परंपराओं के गैर अनुसारक थे. 18वीं और 19वीं शताब्दी के भारत में उल्लेखनीय परिवर्तनों के कारण भारतीय पुनर्जागरण का जनक राजा राम मोहन राय को माना जाता है।
राजा राम मोहन राय किस लिए प्रसिद्ध थे? | What was Raja Ram Mohan Roy famous for?
राजा राम मोहन राय की प्रसिद्धि का कारण उनके द्वारा चलाए गए अभियान जैसे जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के उपयोग खिलाफ थी। और सती प्रथा, बहुविवाह, कन्या भ्रूण हत्या और बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने के लिए राजा राम मोहन रॉय को जाना जाता था। उस समय राजा राम मोहन राय ने हिंदू समाज की वर्णित बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
सती प्रथा को किसने समाप्त किया? | Who ended the practice of Sati?
जब 1828 में भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक बने। तब लॉर्ड विलियम ने सती प्रथा, बहुविवाह, कन्या भ्रूण हत्या और बाल विवाह जैसी कई प्रचलित सामाजिक बुराइयों को दबाने में राजा राममोहन राय की मदद की थी। ब्रिटिश भारत में कंपनी के अधिकार क्षेत्र में लॉर्ड बेंटिक ने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून पारित किया था।