योग क्या है? | What is Yoga in Hindi?
योग शब्द संस्कृत भाषा के “युज” शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है जोड़ना या मिलना। योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसके जरिए शरीर, मन, आत्मा और ब्रह्मांड को एकजुट बनाया जाता है। योग के जरिए मन पर नियंत्रण करके शरीर को स्वस्थ बनाना है और यह भी कहा जाता है कि योग अत्मा से परमात्मा का मिलन।
योग की परिभाषा सभी के अनुसार अलग है जैसे:
- भगवतगीता के अनुसार “योग पीड़ा तथा दुःख से मुक्ति का मार्ग है (Yoga is the way to freedom from pain and sorrow)”
- वेदव्यास के अनुसार “योग समाधि है (Yoga is Samadhi)”
- पतंजलि के अनुसार “मानसिक उतार -चढ़ाव पर नियंत्रण पाना योग है (Yoga is the samadhi of controlling mental fluctuations)”
- बौद्ध धर्म के अनुसार “योग कुशल चित्त की एकाग्रता है। (According to Buddhism, yoga is the concentration of the skilled mind)”
योग का इतिहास | History of Yoga
“योग” का इतिहास बहुत पुराना है, योग अपने आप में ही पूर्ण विज्ञान के समान है। योग का इतिहास 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है, इसके शुरुआत कब और कैसे हुई यह तो नहीं पता, किन्तु योग भारत की दें है। कई इतिहासकार योग की उत्पति सिंधु घाटी सभ्यता के समय की मानते है क्योंकि उस सभ्यता के समय काफी मूर्तियों के आसान योग के अनेक आसनो जैसे पाए गए है।
योग के बारे में वेदो, उपनिषदों, रामायण और महाभारत जैसे विभिन्न ग्रंथो में योग क्रियाओं का वर्णन किया गया है। प्राचीन कवियों व संतो ने भी अपनी अपनी रचनाओं में योग का वर्णन किया है जैसे कबीर, तुलसीदास व सूरदास जैसे महान कवियों ने। आज योग पुरे विश्व में तेजी से प्रचलित हो रहा है और स्वस्थ कोबेहतर बनाना के लिए डॉक्टर भी योग को सही मानते है।
योग के प्रकार | Types of Yoga
योग के प्रकारो के बारे में अभी तक सही जानकारी नहीं है सब जगह योग के प्रकारो के बारे में अलग लिखा है। विकिपीडिया के अनुसार, योग के चार प्रकारों का वर्णन शिवसंहिता तथा गोरक्षशतक में मिलता है। योग के चार प्रकारों निम्नलिखित है:
मंत्रयोग: मन को पार कराने वाला मंत्र ही है, मंत्रयोग का सम्बन्ध मन से ही है। मंत्रयोग से ध्वनि तरंगें पैदा होती है और शरीर व मन दोनों पर प्रभाव डालता है।
हठयोग: हठ का शाब्दिक अर्थ है हठपूर्वक किसी काम को करने से लिया जाता है, हठ के ह का मतलब सूर्य से तथा ठ का मतलब चन्द्र से है। हठयोग सूर्य और चन्द्र की समान अवस्था है। हठयोग के चार अंगों का वर्णन हठ प्रदीपिका में मिलता है।
लययोग: लययोग को कुंडलिनी योग भी कहते है, इसका अर्थ है चित्र मिलन मे लीन हो जाना, प्राण संचार करना तथा ब्रह्म के ज्ञान में लीन होना।
राजयोग: सभी योगों का राजा राजयोग है, योग के आठ अंगों में प्रथम पाँच बहिरंग और अन्य तीन अन्तरंग योग में आते हैं।
गीता में योग के दो प्रकारो का वर्णन मिलता है ज्ञानयोग और कर्मयोग। ज्ञान और स्वयं का जानकारी अर्जित करने को ज्ञानयोग कहते है। और कर्मयोग कर्म में लीन होना होने को कहते है।
योग का महत्व | Importance of Yoga
वर्तमान समय में सभी व्यक्ति अपने जीवन में व्यस्त है उन्हें अपनी व्यस्त जिंदगी को आराम देने के लिए योग करना चाहिए, ताकि वह शारीरिक व मांनसिक रूप से स्वस्थ्य रहे। आज के समय में सभी मानसिक दबाब, चिंता तथा तनाब से जी रहे है अपनी जीवन में कुछ करने के लिए।
योग के महत्व अनेक है और इसके साथ लाभ भी अनेक है योग के, जिसे अपनाने के बाद आप शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक समस्याओ से मुक्त हो जाएंगे।